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OIL Kiran Year 20 Vol 33

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वर्ष-20, अंक-33 2023

राष्ट्रभारा सहनदी का सक्सी क्षेत्री्य भारा ्सषे कोई ्संघर्ष नहीं है – अनंत गोपाल शेवडे

दवश्वभाषा की ओर दहनदरी के बढ़ते कदम

?तामश्री शैदक्या

आनरित - ऋतुराज बोरा

सामग्ी नवभाग, दुनि्याजान

तकनीकी दुसन्या में ्समसत सवश्व एक वैसश्वक गाँव बन ग्या है,

सज्समें कभी भी, कहीं ्सषे भी, सक्सी ्सषे भी ततका् ्संपक्ष स्ासपत

हो ्सकता है, ्यह भी भसवष््यवाणी की जा रही है सक वैश्वीकरण कषे

इ्स दरौर में सवश्व की द्स भारा ही जीसवत रहेंगी, सजनमें सहनदी भी

एक होगी। वैश्वीकरण और बाजारवाद कषे ्संदभ्ष में सहनदी का महतव

इ्सस्ए बढ़षेगा क्योंसक भसवष््य में भारत व्याव्सास्यक, व्यापाररक एवं

वैज्ासनक दृसष्ट ्सषे एक सवकस्सत दषेश होगा। सवश्वभाराएं तो सवश्व की

उ्स प्रत्यषेक भारा को कहा जा ्सकता है, सज्समें प्र्योक्ता एकासधक

दषेशों में ब्सषे हुए हैं सकनतु सवश्वभारा पद की वासतसवक असधकाररणी

वषे भाराएं हैं, जो सवश्व कषे असधकतर दषेशों में पढ़ी, स्खी, बो्ी, ्सुनी

और ्समझी जाती हैं। वसतुतः प्रत्यषेक सवश्वभारा

कषे प्रमुख का्य्ष होतषे हैं-बो्चा्

एवं जन्संपक्ष , ्सासहत्य ्सृजन,

सशक्ा एवं जन्संचार माध्यम,

प्रशा्ससनक

कामकाज,

व्याव्सास्यक

और

तकनीकी अनुप्र्योग और

सवश्वबोध ्या वैसश्वक चषेतना।

सवश्वभारा ्सषे अपषेक्ाएं होती

हैं सक उ्सषे बो्नषे-्समझनषे वा्ों

का सवसतृत भरौगोस्क सवसतार हो। आज

भारत कषे बाहर नषेपा्, भलूटान, स्संगापुर, म्षेसश्या, ्ाई्ैंड,

हांगकांग, फीजी, मॉरीश्स, सट्रनीदाद, ग्याना, ्सलूरीनाम, इंग्ैंड,

कनाडा और ्सं्युक्त राज्य अमषेररका में सहनदी भारी प्रचुर ्संख्या में

हैं। दलू्सरी अपषेक्ा है सक वह भारा ्ची्ी हो, उ्समें सभनन ्संदभभों

की असभव्यसक्त की क्मता हो, उ्सका एक ्सव्षसवीकृत मानक रूप

हो, उ्समें उपमानकों की कुछ दलूर तक सवीकृसत होतषे हुए भी परसपर

्संप्रषेरणी्यता सक्सी-न-सक्सी सवीकृत मानक कषे माध्यम ्सषे बनी हुई

हो और सहनदी में ्यह गुण भी हैं।

्सामासजक सतर पर भी भारती्य भाराओं कषे ्सममान, सवका्स एवं

प्रसतावना

भारा मानव ्समाज की अप्रसतम उप्सबध है। भारा भावों, सवचारों

की असभव्यसक्त अ्वा भाव ्समप्रषेरण का ्सव्ष्सु्भ व ्सशक्त

्साधन है। तासतवक रूप ्सषे भारा धवसन प्रतीकों की एक व्यवस्ा

है सज्सकषे माध्यम ्सषे मानव ्समलूह सवचार-सवसनम्य करता है। इनहीं

धवसन-प्रतीकों ्या शबदों कषे भाव शबद ्या भारा द्ारा ही मानव

्समाज में प्रचस्त होतषे हैं। वसतुतः भारा ही ज्ान का ्सव्ष्सु्भ

माध्यम है। इतना ही नहीं, भारा ही सक्सी दषेश की ्सचची पहचान,

उ्स दषेश की ्संसकृसत की ्संवासहका होती है। सक्सी भी राष्ट्र की

वैचाररक एवं ्सामासजक एकता का आधार भी भारा ही है।

ज्यों-ज्यों ्सभ्यता का सवका्स होता है, भारा

भी प्ररौढ़ और पुष्ट होती जाती है।

राजनीसतक, व्यापाररक ्या

धासम्षक ्संबंध जलद ्या दषेर ्सषे

कमजोर पड ्सकतषे हैं और

प्रा्यः टलूट जातषे हैं, ्षेसकन

भारा का ररशता ्सम्य और

अन्य सबखरनषे वा्ी शसक्त्यों

की परवाह नहीं करता और एक

तरह ्सषे मजबलूत हो जाता है। सक्सी

एक राष्ट्र को दृढ़ और मजबलूत बनानषे कषे स्ए

उ्स दषेश में ्सांसकृसतक सवसशष्टता का होना सनतानत आवश्यक है

और सक्सी राष्ट्र की भारा त्ा स्सप इ्स ्सांसकृसतक सवसशष्टता का

एक सवशषेर अंग होती है। ्यह सनसचित है सक राष्ट्री्य भारा कषे सबना

सक्सी राष्ट्र कषे अससततव की कलपना ही नहीं हो ्सकती। सहनदी,

सज्सषे भारती्य ्संसवधान में राजभारा घोसरत कर सद्या ग्या है और

जो इ्स दषेश की आतमा को बहुत अंश तक काफी का् ्सषे व्यक्त

करती आ रही है, अनषेकता कषे बीच एकता कषे ्साम्राज्य को स्ासपत

करनषे में अपना महत्वपलूण्ष ्योगदान दषेती रही है।

वैदश्वक पररप्रेक््य में दहनदरी भाषा की अवदसथदत - आज की

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